इंतज़ार

मैं इंतज़ार में हूं,
तेरे आने से बेचैन बैठा
मैं तुझे मिलने के ख्याल से
ऐतबार में हूं ,
मैं इंतज़ार में हूं ।

बड़ा हुआ तो इस ज़माने में मैने क्या देखा है ?
जिस रेलगाड़ी को बचपन में देख कर हाथ हिलाता था
उसी में अब अपनों को जाते देखा है ।
उसी प्लेटफार्म पर खड़ा मैं बेकरार सा हूं,
मैं हर रेलगाड़ी में तुझे ढूंढता तेरे इंतज़ार में हूं ।

हफ्ते भर के काम से थका,
मैं तेरे इतवार में हूं ।
सुबह की धूप ,
शाम की छांव में हूं ।
घंटी बजे, दरवाज़ा खुले ,
आंखे बिछाए मैं तेरे इंतज़ार में हूं।

खतों के इंतज़ार में,
हर डाकिए की ताक में हूं ।
तेरे हर सवाल के जवाब में हूं,
मैं तेरी लिखावट को पढ़ने की आस में हूं,
हर लम्हा तेरे इंतज़ार में हूं ।

गर्मी की धूप में झुलसता,
मैं तेरी छांव में हूं।
सर्दियों की कंपन में ठिठुरता,
मैं तेरी बाहों को ऊष्म में हूं।
पतझड़ के बाद तरसते हरे पत्तों को,
मैं तेरे आने की बसंत के इंतज़ार में हूं ।

कुछ इस तरह दूर रहने लगे हो,
मिलते हो रोज़
मेरे खायलो में, मेरी शायरी में, मेरे अलफाजों में,
तभी आंख बचाने लगे हो ।
मैं अर्से से रुका हूं जो चाय का प्याला लिए,
तुम अब इंतज़ार में अपने मुझे तड़पाने लगे हो ।

मैं हूं हर सोमवार की तरह डीठ,
हर हफ्ते तेरे दरवाजे की दस्तक में हूं,
मेरी चाय, मेरी बातें अभी भी वैसी हैं
हर शाम के ढलते सूरज में हूं,
तेरा चेहरा ही तो अमृत है मेरा,
मैं हर लम्हा तेरे आने के इंतज़ार में हूं ।

मैं तेरे ऐतबार में
तेरे इंतज़ार में हूं ।

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